20 फरवरी 2015 को 82 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता और सीपीआई नेता माननीय गोविन्द पंसारे की मृत्यु हो गई | पीयूडीआर इस बात पर शोक प्रकट करता है और मृत्यु से चार दिन पहले उन पर और उनकी पत्नी उमा पंसारे पर कोल्हापुर में बंदूकधारियों द्वारा हुए जानलेवा हमले की निंदा करता है | अपने पूरे जीवन काल में गोविन्द पंसारे कईं सामाजिक और राजनैतिक संघर्षों में गहनता से सक्रिय थे | वे ऐटुक के नेता थे और उन्होंने श्रमिक प्रतिष्ठान की स्थापना की जिसके अंतर्गत उन्होंने धार्मिक व सांस्कृतिक दक्षिणपंथी और शक्तिशाली निहित स्वार्थ को चुनौती देने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया | उन्होंने जाति, वर्ग, पितृसत्ता और धर्म के विरोध में साहित्यिक व सांस्कृतिक परम्पराओं का आह्वान करते हुए कामरेड अन्नाभाऊ साहित्य सम्मेलनों का आयोजन भी किया | उन्होंने कईं लोकप्रिय किताबें लिखीं जिनमें से एक में उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों द्वारा शिवाजी के बारे में फैलाए गए मिथकों का भंडाफोड़ किया है | हाल ही में वे कोल्हापुर में लगाए जा रहे टोल बूथों (जिनके ज़रिये नागरिकों पर सड़कें प्रयोग करने के लिए टोल टैक्स थोपा जा रहा था) के खिलाफ एक सशक्त और सफल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे |
डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर के नेतृत्त्व में शुरू की गई “अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति” के सक्रिय सदस्य के रूप में कामरेड पंसारे अन्धविश्वासी प्रथाओं और धर्म के नाम पर रूढ़िवादी और दकियानूसी शक्तियों द्वारा किये जा रहे लोगों के शोषण के खिलाफ भी मोर्चा लड़ रहे थे | इस बात पर प्रेस में चर्चा हो रही है की डॉ. दाभोलकर और गोविन्द पंसारे की हत्या एक ही तरीके सी की गई | डॉ. दाभोलकर को भी पुणे में अगस्त 2013 में सुबह सैर करते समय गोली मार दी गई थी | आज 18 माह बाद भी उनकी हत्या के मामले में कोई भी अपराधी पकड़ा नहीं गया है | जनवरी 2010 में तालेगाँव, महाराष्ट्र में आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी की हत्या भी ऐसे ही हुई थी | वे महाराष्ट्र में आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर नाम की एक कंपनी द्वारा ज़मीन हथियाने के खिलाफ मोर्चा चला रहे थे | संयोग से यहीं वह कंपनी है जो कोल्हापुर में टोल बूथ चला रही है और जिनका विरोध कामरेड पंसारे कर रहे थे | सतीश शेट्टी की हत्या के पांच वर्ष बाद भी अपराधियों का पता नहीं चल पाया है और अगस्त 2014 में समापन रिपोर्ट जमा कर दी गई थी | मगर पंसारे पर हमले के बाद सीबीआई ने दावा किया है कि वह सतीश शेट्टी का मामला दोबारा खोलेगी क्यूंकि उनके पास कुछ नए सबूत हैं |
ऐसे मामलों में न्याय में देरी होने के कारण न सिर्फ न्याय का खण्डन होता है, पर साथ ही ऐसे अन्य अपराध करने के लिए प्रोत्साहन भी मिलता है | हत्यारों को सज़ा देना इसीलिए भी ज़रूरी है क्यूंकि इन हत्याओं के माध्यम से हिंसात्मक रूप से उन लोगों की आवाज़ों को कुचलने का प्रयास किया जा रहा है, जो हकों व विवेक के लिए और साम्प्रदायिक ताकतों व सामाजिक अन्यायों के खिलाफ लड़ रहे हैं | यहाँ न्याय में देरी का मतलब यह होगा की उन ताकतों को दण्डमुक्ति मिल जाएगी जिनके खिलाफ गोविन्द पंसारे और अन्य साथी लड़ रहे थे और यह लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए घातक होगा | चाहे गोविन्द पंसारे की हत्या हिंदु रूढ़िवादी साम्प्रदायिक समूहों द्वारा की गई हो जिनको उन्होंने चुनौती दी थी या फिर उन कंपनियों ने जिनके मुनाफों पर पंसारे की सक्रियता का असर पड़ रहा था या फिर इन दोनों की साज़िश द्वारा, पीयूडीआर मांग करता है की जो भी कुसूरवार है उनको जल्द से जल्द पहचान कर, उनके खिलाफ अभियोजन चलाया जाना चाहिए | पीयूडीआर गोविन्द पंसारे, डॉ. दाभोलकर और सतीश शेट्टी द्वारा निहित स्वार्थों और जन-विरोधी ताकतों के खिलाफ उनके संघर्षों का और लोकतांत्रिक अधिकारों को सही मायने देने के उनके प्रयास का अभिवादन करता है |
मेघा बहल और शर्मिला पुरकायस्थ
सचिव
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