स्वर्ण लिबरेशन फ्रंट के सदयों द्वारा २१ सितम्बर १९९१ को सात भूमिहीन मज़दूरों को सावनबीघा (जहानाबाद ) पकड़कर लाया गया और मार डाला गया। दो दिन बाद एक अन्य घटना में किसान संघ के सदस्यों ने सात गरीब दलितों को करकतबीघा (पटना ) में गोलियों से भून डाला। १ अक्टूबर को लगभग आधी रात के वक़्त तीनदीहा (गया) में एक बटाईदार के सात सदस्यों घरों से बहार लाया गया और उबकी गार्डों काट दी गयी. २३ दिसंबर की रात को स्वर्ण लिबरेशन फ्रंट के सदयों ने मेन और बरसीवा (गया) में १० दलितों के जान ली। १२ फ़रवरी १९९२ की रात को बारा (गया) में ३६ भूमिहार भूस्वामियों को मार दिया गया।
ग्रामीण बिहार हत्याओं की आखरी वारदात अन्य वारदातों के विपरीत जाकर कड़ी होती है, न केवल मरने वालों की संख्या के सन्दर्भ में बल्कि इस सन्दर्भ में भी कि इन हत्याओं को अंजाम देने वाले भूमिहीन, दलित और गरीब किसान थे।
पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रैटिक राइट्स पटना, जहानाबाद और गया जिलों में इन घटनाओं में से कुछ की छानबीन की। यह रिपोर्ट दिसंबर १९९२ में प्रकाशित की गयी।
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ये फसल उमीदों की हमदम: मध्य भार में जनसंहार और किसान संघर्ष