People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

पी.यू.डी.आर., 9 तारीख की दोपहर को दिनदहाड़ेसादे कपड़ों पहने हुए लोगों द्वारा डॉजी.एनसाईबाबा के अपहरण और गिरफ़्तारी की कड़ी आलोचना करता है। डॉसाईबाबाजो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेज़ी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैंजब दिन में करीब 1 बजे नार्थ कैंपस में परीक्षा की कापियाँ जांच कर वापस  रहे थे तो सादे कपड़ों में महाराष्ट्र के पुलिसकर्मियों ने उनकी कार को रोक लियाउनकी आँखों पर पट्टी बांध दी और अपने साथ ले गये। सबसे हाल की रिपोर्ट के अनुसार उन्हें नागपुर ले जाया जा चुका है।

सरासर झूठ बोलते हुए गडचिरोरी के डीआईजीरविंद्र कदम ने मीडिया से कहा कि डॉसाईबाबा को सुबह गिरफ़्तार किया गया था। सादे कपड़े पहने हुए जिन पुलिस वालों ने डॉसाईबाबा का अपहरण किया उन्होंने उनकी गिरफ़्तारी का कोई वारंट उनकी पत्नी को नहीं दियय। एक गुमनाम फोन के जरिए उन्हें गिरफ़्तारी के बारे में बताया गया। ये सब गिरफ़्तारी से संबंधित नियमों के उल्लंघन हैं। याद रखा जाना चाहिए कि माओवादियों के साथ उनके तथाकथित संबंधों के संबंध में पुलिस डॉसाईबाबा के घर में पहले ही छापा मार चुकी है और पिछले चार छः महीनों में चार बार उनसे पूछताछ कर चुकी है। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि साईबाबा 90 प्रतिशत विकलांगता से पीड़ित हैं और वीलचेअर पर निर्भर हैं।

डॉसाईबाबा को उस मामले में गिरफ़्तार किया गया है जिसमें प्रशांत राही और हेमंत मिश्रा का पहले ही गिरफ़्तार किया जा चुका है। यह मामला गडचिरोली जिले के अहेरी पुलिस स्टेशन में अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंंशन एक्ट (यूएपीएके तहत दर्ज़ है (एफ.आई.आरनम्बर 3017/2013) पीयूडीआर ने यूएपीए के अनेकों मामलों को दर्ज़ और उजागर किया है जो कि यह साबित करते हैं कि लोगों के अधिकारों का हनन किस तरह यूएपीए जैसे कानूनों के क्रियान्वन में ही निहित होता है। समाज के स्तर पर यूएपीए सरकार को यह अधिकार दे देता है कि वह मनमाने ढंग से अपनी मर्ज़ी के अनुसार किसी भी राजनैतिक मत को गैरकानूनी और प्रतिबंधित घोषित कर दे। यह प्रतिबंध फिर किसी भी व्यक्ति या समूह कोजो कि सरकार को नापसंद होनिशाना बनाने के लिए और उस पर कानूनी हिंसा से हमला करने का आधार बन जाता है। इसके बाद न्याय और न्यायिक निवारण के दरवाज़े इतने सीमित हो जाते हैं कि वह व्यक्ति सालों साल तक जेल में सड़ता रहता है।

मौजूदा मामले में भी अभियुक्तों पर लगाए गए सभी आरोप यूएपीए के अस्पष्ट प्रावधानों और मनमाने ढंग से राजनैतिक संगठनों को प्रतिबंधित करने की इसकी शक्ति पर आधारित हैं। मामले में पहले से ही बंद प्रशांत राही और हेमंत मिश्रा पर यूएपीए के सैक्शन 13 (गैरकानूनी कार्यकलाप), 18 (आतंकवादी कार्यो में षडयंत्र), 20 (आतंकवादी संगठन का सदस्य होने), 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यताऔर 39 (आतंकवादी संगठन से सहयोगके आरोप लगाए गए हैं। यूएपीए का इस्तेमाल इसलिए किया गया है क्योंकि अगर यही आरोप साधारण कानूनों के तहत लगाए जाएंइन्हें साबित करने के लिए साधारण कानूनी प्रक्रियाओं और साक्षों पर आधारित साधारण नियमों का इस्तेमाल किया जाए तो ये टिक ही नहीं पाएंगे।

यूएपीए के तहत बढ़ी हुई सजाएं और इसके तहत सोचेसमझे तरीके से गढ़ी गई अंधराष्ट्रीयताएक तरफ खुशहाल भारत के हाशियों पर रह रहे लोगों की सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक वास्तविकताओं को छुपाती है तो दूसरी तरफ आम लोगों में एक काल्पनिक क्रूर और अमानवीय शत्रु का डर पैदा करती है। इससे फिर साधारण नागरिक अपनी काल्पनिक सुरक्षा के लिए एक बड़े वर्ग को उसके अधिकारों से वंचित करने की अनुमति देने लगता है।

यूएपीए की हिला देने वाली वास्तविकता हमें बार बार परेशान करती है। यह बार बार अपने गलत इस्तेमालअपने अन्याय के रूप में सामने आती है। इस भूलभुल्लैया से निकलने का एक ही तरीका है कि हम जनवाद को गलत ढंग से सत्तावादी रूप में ढाल देने वाले इस कानून को पूरी तरह से अस्वीकार कर दें।

इसलिए हम यह मांग करते हैं कि यूएपीए के उन प्रावधानों को जिनके तहत डॉसाईबाबा को गिरफ़्तार किया गया है तुरंत खारिज किया जाए। पुलिस के पास कोई ऐसे कारण उपलब्ध नहीं हैं जिनके तहत डॉ.साईबाबा को हिरासत में रखा जा सके : जब भी ज़रूरत हुई तब वे पुलिस की जांच पड़ताल के लिए प्रस्तुत होते रहे और उसमें सहयोग करते रहेवे व्हीलचेयर पर निर्भर हैं और उनकी गतिशीलता सीमित है। ये सभी अत्यावश्यक कारण हैं जिनके आधार पर उन्हें हिरासत से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

पीयूडीआर सभी नागरिकां से यह अपील करता है कि वे यूएपीए के इस्तेमाल से जनवादी मानकों और संस्थानों के तेज़ी से हो रहे क्षरण को पकड़ें और यूएपीए के इस्तेमाल का विरोध करें और इसके पूरी तरह निरस्त किए जाने की मांग करें।

डी.मंजीत, आषीश गुप्ता
( सचिव )
pudr@pudr.org

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