People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

पीयूडीआर गुजरात में गिर सोमनाथ जिले के उना तालुका अंतर्गत मोटा समाधियाला गाँव में गौ-रक्षकों द्वारा चमार जाति के 7 लोगों के साथ मार-पीट, कपड़े उतारने और प्रदर्शन करने की घटना की कड़ी निंदा करता है। इसने हिन्दुत्व के गाय की राजनीति की ब्राह्मणवादी चरित्र तथा राज्य के जातिवादी चरित्र को केन्द्रीय स्तर पर सामने लाया है। व्यापक रूप से इस बात की सूचना मिली है कि यह घटना पुलिस थाना के ठीक बाहर ही हुई है तथा इसमें ड्युटी पर तैनात पुलिसकर्मियों की लाठियों का प्रयोग किया गया।

इस क्रूर हमले के खिलाफ पूरे राज्य में लोगों के अंदर एक स्वतःस्फूर्त एवं व्यापक नाराज़गी है। लोगों ने अलग-अलग तरीके से अपने गुस्से का इज़हार किया है। हम 19 जुलाई को सर्वप्रथम उना में तथा बाद में गुजरात के दूसरे राज्यों में दलित समूहों द्वारा अपनाए गए प्रतिरोध के ज़ोरदार तरीकों का समर्थन करते हैं। इसने जातिवादी हिन्दुत्ववादी ताकतों के द्वारा ‘गाय की राजनीति’ के प्रपंच को जगजाहिर कर दिया है। राज्य अधिकारियों के दफ्तरों के बाहर मरी हुई गायों के शवों को फेंककर दलित प्रदर्शनकारी गौ-रक्षकों तथा इनका समर्थन करनेवाली पुलिस मशीनरी को चुनौती दे रहे हैं कि वे अपनी पवित्र गाय की रक्षा करने के प्रति स्व-घोषित कर्त्तव्य को स्वयं पूरा करें।

निगरानी करने वाले गौ-रक्षक समूह जो मुस्लिम समुदाय के लोगों पर कभी मवेशियों को ट्रांसपोर्ट कर ले जाने पर गौकशी का आरोप लगाकर तो कभी गौ-मांस खाने अथवा रखने का आरोप लगाकर हमला कर रहे हैं, वे मृत पशुओं की खाल उतारकर चमड़ा बनाने के काम में संलग्न या गौ-मांस खानेवाले दलित समुदाय के सदस्यों को भी निशाना बना रहे हैं (देखें पीयूडीआर प्रेस विज्ञप्ति 6 जुलाई 2016)। विडंबना है कि इन क्रियाकलापों को ब्राह्मणवादी हिन्दुवाद के अंतर्गत दलितों के ‘पारंपरिक’ व्यवसाय के रूप में निर्धारित किया गया है। लेकिन अब हिन्दूत्व का झंडा उठानेवाले लोगों द्वारा हो रहे हमलों को सही ठहराने के लिए उन्हीं दलितों को उनको सौंपे गए उन्हीं कार्यों को संपादित करने के लिए हिन्दू-विरोधी बताया जा रहा है। शुद्धता (पवित्रता) के अनुष्ठान (कर्मकांड) के साथ और केन्द्र में प्रदुषण को रखकर, ब्राह्मणवादी हिन्दूत्ववाद श्रम-विभाजन के द्वारा चमड़ा उतारने और मृत पशुओं को निपटाने के ‘दूषित’ या ‘गंदे’ कार्यों को पहले से भूमिहीन दलित समुदायों को देकर जाति-आधारित संरचनात्मक हिंसा करता है। गाय और पशुओं के इर्द-गिर्द श्रम-संबंध विभिन्न व्यवसायों को सम्मिलित करता है जिसमें बुचड़खाने में पशुओं को मारकर मांस सप्लाई करने या स्वभाविक रूप से मृत पशुओं के शवों को इकट्ठा करना तथा जीवन और जीविका के लिए मृत पशुओं का चमड़ा उतारना शामिल है। ये सभी जाति समुदाय के लाइन पर ही स्थापित हैं, और अब गौ-रक्षा या गौमांस की राजनीति करके आर.एस.एस. और वी.एच.पी. भारतीय जाति व्यवस्था में अंतर्निहित संरचनात्मक हिंसा को और बढ़ावा दे रहा है।

गुजरात में उना हिंसा के खिलाफ हुआ प्रदर्शन, राज्य में पिछले 30 वर्षों में सबसे बड़ा दलित आंदोलन है जिसमें 20 से ज्यादा दलितों ने आत्महत्या का प्रयास किया, कई वाहनों में आग लगा दिया गया, राजमार्गों को बंद कर दिया गया और एक पुलिसकर्मी की पत्थरबाजी में चोट लगने से मृत्यु भी हुई। इसके पहले 1985 में यहाँ आरक्षण को लेकर इस समुदाय ने आंदोलन किया था। प्रदर्शन की इस ताकत ने उस क्षेत्र में तथा राज्य और देश के अन्य हिस्सों में गौ-रक्षकों द्वारा हाल में दलितों पर किए गए दूसरे हमलों की घटनाओं को भी प्रकाश में लाया। उदाहरण के लिए एनडीटीवी ने गुजरात के राजकुला में 22 मई को चमड़ा बनाने वाले 7 मजदूरों पर गौ-रक्षकों द्वारा इसी प्रकार के हमले की जानकारी दी जिसमें गौ-रक्षकों ने दलितों पर गाय की हत्या करने का आरोप लगाया था। इन गौ-रक्षक समूहों द्वारा दलितों पर किया जानेवाला हमला केवल गुजरात तक सीमित नहीं है बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी हो रहा है। कर्नाटक के चिक्कमगलुरू जिले के कोप्पा में 24 जुलाई को एक दलित परिवार पर उनके घर में गौमांस (बीफ) पकाने का आरोप लगाकर बजरंग दल के सदस्यों ने हमला किया, जबकि राज्य में बीफ पर कोई प्रतिबंध भी नहीं है। गौरतलब है कि पुलिस ने पशु के खिलाफ हिंसा का आरोप लगाकर पहले पीड़ित को ही गिरफ्तार कर लिया था तथा दलित अधिकार समूहों के प्रदर्शन के बाद ही हमलावरों के खिलाफ कार्यवाही की। 24 जुलाई को दिल्ली में उना हिंसा के खिलाफ ‘यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया’ के नेतृत्व में जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे दलित समुदाय के लोगों पर हिन्दूत्व समर्थित ‘सिंह सेना’ के सदस्यों ने हमला कर मार-पीट एवं गाली-गलौज किया। 26 जुलाई को मध्यप्रदेश के मंदसौर रेलवे स्टेशन पर बीफ रखने के कारण दो मुस्लिम महिलाओं के साथ उन्मादी भीड़ ने तकरीबन एक घंटे तक मार-पीट एवं गाली-गलौज किया तथा मांस बेचने के लिए परमिट नहीं होने का चार्ज लगाकर उनपर मामला दर्ज़ किया गया। इन सभी हमलों में दलितों और मुस्लिमों की रक्षा तथा हमलावर गौ-रक्षक समूहों के खिलाफ कार्यवाही करने में पुलिस की विफलता एक सामान्य बात है।

गुजरात में दलितों द्वारा किया गया विरोध-प्रदर्शन राज्य की न्याय-व्यवस्था पर एक कड़ा अभियोग है जो बड़ी संख्या में जातिवादी उत्पीड़न के खिलाफ निवारण प्रदान करने में विफल रहा है। गुजरात में भारत की दलित जनसंख्या का महज़ 2.33 प्रतिशत निवास करता है लेकिन दलितों के खिलाफ अपराध की घटनाओं में इसकी रैंकिंग आधे से ऊपर वाले भाग में है। 2013 के एन.सी.आर.बी. डाटा के अनुसार राज्य में दलितों के खिलाफ अपराध के दर्ज़ मामलों में से केवल 2.5 प्रतिशत में ही दोषसिद्ध हो पाया जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसका औसत 23.8 प्रतिशत है। 2014 में यह आंकड़ा 3.5 प्रतिशत था जबकि राष्ट्रीय औसत 28.8 प्रतिशत था। हाल में 2015 में यह 6 प्रतिशत तक पहुँच पाया है लेकिन पुलिस से लेकर अभियोजन एवं न्यायाधीशों तक पूरी न्याय-श्रृंखला में पीड़ितों के ऊपर अत्यधिक भार डालने की प्रक्रिया अभी भी जारी है। इससे दण्डाभाव (दण्ड से छूट) एक खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है तथा दण्ड का भय नहीं होने के कारण दलितों के खिलाफ उत्पीड़न एवं अत्याचार को बढ़ावा मिलता है। इसी दण्डाभाव के कारण गौ-रक्षकों का हौसला इतना बढ़ गया कि वे अपने ही अपराध का वीडियो बनाकर प्रसारित कर रहे हैं तथा विडंबना है कि वे इसे दूसरों के लिए भी एक ‘चेतावनी’ के रूप में प्रसारित कर रहे हैं।

उना की घटना और इसकी प्रतिक्रिया में पूरे राज्य भर में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हमें जाति-आधारित ऊँच-नीच (पदानुक्रम), तथा गाय के इर्द-गिर्द व्यवसायिक संरचना को देखने के लिए विवश करता है जो केन्द्रीय रूप से हिन्दूत्व की राजनीति से जुड़ा हुआ है, तथा दलितों एवं मुस्लिमों पर उन्मादी गौ-रक्षकों द्वारा बढ़ावा दिए जा रहे हिंसा के चरम रूप के नींव में है। वत्र्तमान सरकार द्वारा गौ-रक्षा की राजनीति का कट्टर समर्थन, इस तरह के उन्मादी समूहों के लिए दण्ड से छूट के रूप अभिव्यक्त होता है, जो सम्मानपूर्ण तरीके से जीने और जीविका के लोकतांत्रिक अधिकार के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह विरोध-प्रदर्शन इस तथ्य को उद्घाटित करता है कि जो, अपने प्रतीक के रूप में गाय के साथ, हिन्दूत्व की विचारधारा और अखिल-हिन्दू-राष्ट्रवाद का समर्थन करते हैं, मूलतः एक असमान और दमनकारी समाज के लिए खड़े हैं। और जब राज्य के प्राधिकारी इसका समर्थन करते हैं तो लोकतंत्र के लिए इसके निहितार्थ वास्तव में काफी गंभीर हैं।

पीयूडीआर माँग करता है किः

  1. गौ-रक्षा समूहों एवं ‘समितियों’ के खिलाफ एससी एंड एसटी (प्रिवेन्षन ऑफ़ एट्रोसिटीज) एक्ट के अंतर्गत तथा समुदायों के खिलाफ नफरत फैलाने के आरोप के अंतर्गत सख्त कार्यवाही की जाय।
  2. अपनी ड्यूटी में लापरवाही बरतने के लिए पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए।
  3. उन्मादी गौ-रक्षक समूहों के अत्याचार से पीड़ित सभी भुक्तभोगियों के खिलाफ दायर सारे मामले वापस लिए जाएँ चाहे वे गौ-मांस के रखने, ट्रांसपोर्ट करने या खाने से संबंधित हों या पशु के खिलाफ क्रूरता का मामला हो।

 

दीपिका टंडन, मौशुमी बासु

(सचिव, पीयूडीआर)

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