People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

पीयूडीआर अपने वरिष्ठ सदस्य, जाने-माने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, लेखक और पत्रकार, गौतम नवलखा की भीमा कोरेगांव मामले में नियमित जमानत को बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता है। दिनांक 19 दिसंबर 2023 को बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा नवलखा को जमानत दिए जाने के बावजूद, अदालत ने रिहाई पर रोक लगा दी थी और NIA को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी कोर्ट के इस ‘स्टे’ पर मोहर लगाई थी। दिनांक 14 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर लगी रोक को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि गौतम नवलखा ने चार साल से अधिक का समय हिरासत में बिताया है; मामले में आरोप तय नहीं हो पाए हैं; और, इस मुकदमे को अपने अंजाम तक पहुँचने में अभी कई वर्षों का समय लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से अपने इस फैसले में कहा कि नवलखा को जमानत देने का बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश इस मामले पर खासा विस्तृत था, जिसका अर्थ है कि इसकी समीक्षा करने की दरकार नहीं है। फैसला सुनाते समय, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के दो-न्यायाधीशों के फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें कहा गया था कि दाखिल दस्तावेजों के अवलोकन पर, गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), के तहत आतंकवादी कृत्यों में गौतम नवलखा की भागीदारी का अंदाज़ा लगाने के लिए कोई पुख़्ता सबूत नहीं मिला था। और यह कि नवलखा के खिलाफ दाखिल किए गए दस्तावेज़ “अफ़वाहों या सुनी-सुनाई बातों पर आधारित हैं, और उन्हें किसी भी गुप्त या प्रत्यक्ष आतंकवादी कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है।”

आनंद तेलतुंबडे, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्वेज़ और शोमा सेन के बाद, गौतम नवलखा भीमा कोरेगांव मामले के पाँचवे ऐसे आरोपी हैं, जिन्हें इस आधार पर जमानत दी गई है कि राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) द्वारा 20,000 पन्नों की भारी-भरकम चार्जशीट दाखिल किए जाने के बावजूद, UAPA के तहत आने वाले किसी भी क़िस्म के आतंकवादी कृत्य में किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ भागीदारी के कोई ‘प्रथम दृष्टया’ सबूत पेश नहीं किए गए हैं। अब तक के तमाम जमानती आदेश इस बात की पुष्टि करते हैं कि भीमा कोरेगांव की तथाकथित साजिश एक कोरी कल्पना के अलावा कुछ नहीं। यह पूर्णत: तथ्यहीन और आधारहीन है। इस मामले ने ‘प्री-ट्रायल’ हिरासत की एक पूरी व्यवस्था गढ़ी गई है। सालों तक कैदखानों में रहने के बाद कुछ को ही राहत मिल पाई है। कई आज भी सीखचों के पीछे हैं। भीमा कोरेगांव मामले में, सह-अभियुक्त महेश राउत, सितंबर 2023 में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा जमानत के बावजूद हिरासत में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक उनकी अपील पर फैसला नहीं लिया है। NIA द्वारा उनकी जमानत के खिलाफ, हमें भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी 84-वर्षीय फादर स्टेन स्वामी को याद रखने की जरूरत है, जिनकी 5 जुलाई 2021 को न्यायिक हिरासत में मौत हो गई थी। हालाँकि, फादर स्टेन स्वामी हिरासत से रिहाई के वाजिब हक़दार थे। हम नहीं चाहते कि किसी अन्य आरोपी के साथ ऐसा कुछ घटित हो।

पीयूडीआर सुप्रीम कोर्ट से अपील करता है कि प्री-ट्रायल हिरासत की इस क़वायद को समाप्त और भीमा कोरेगांव के शेष आठ आरोपियों को तत्काल रिहा किया जाए। पीयूडीआर अदालतों से भी अपील करता है कि अदालतें प्रतिपक्ष के दबाव में आकर अपने स्वयं के जमानत के निर्णयों पर रोक लगाकर अपने संवैधानिक दायित्व से मूँह न मोड़ें। UAPA को लेकर पुख़्ता हो चुकी अवधारणा कि ‘प्रक्रिया ही सजा है’ को नकारने हेतु आवश्यक है कि अदालतों द्वारा, उन लोगों, जिन्हें गैर-वाजिब हथकंडे अपनाकर कैद में डाला जाता है, की स्वतंत्रता को और अधिक हनन से बचाने के लिए अधिक प्रयास करने की दरकार है।

परमजीत सिंह और जोसफ मथाई
(सचिव)
pudr@pudr.org

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PUDR welcomes bail to civil rights activist Gautam Navlakha

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