उद्योग विहार की कपड़ा फक्ट्रियों में हादसों की सूची बढ़ती जा रही है | 20 जून 2015 को ओरियेंट क्राफ्ट नामक फैक्ट्री के ‘फिनिशिंग’ विभाग में काम करने वाले एक मज़दूर पवन कुमार को लिफ्ट का प्रयोग करते समय बिजली के झटके लगे थे और वह घायल हो गया था | खबर सुनते ही कई मज़दूर फैक्ट्री के गेट पर इकट्ठा हो गए थे | इससे पहले 12 फरवरी 2015 को उद्योग विहार, गुड़गांव में कपड़ा फैक्ट्रियों के सैंकड़ों मज़दूर सड़कों पर आ उतरे और कुछ फैक्ट्रियों की बिल्डिंगों पर पत्थर फैंके | उन्होंने अफ़वाह सुनी थी की उनके एक साथी मज़दूर समी चंद की मौत हो गई है | बाद में पता चला कि समी चंद की मौत नहीं हुई थी, पर दो दिन पहले उसके साथ बुरी तरह मार पीट की गई थी | वह गौरव इंटरनाश्नल (प्लाट संख्या 236, उद्योग विहार, फेज़ 1) में काम करता था और 10 फरवरी को काम पर देरी से पहुँचने पर कम्पनी के अफसरों और कर्मचारियों ने उसे मिलकर पीटा था | पी.यू.डी.आर. और पर्सपेक्टिव्स ने तय किया की वह इस घटना की एक जॉइंट फैक्ट-फाइंडिंग (सम्मिलित जांच) करेंगे | टीम सामी चंद, उसकी पत्नी और भाई से मिली | साथ ही टीम सूबे सिंह (एस.एच.ओ., उद्योग विहार थाना), अमरदीप डागर (जनरल मेनेजर – ह्यूमन रिसोर्सेस और एडमिनिस्ट्रेशन, रिचा एंड कंपनी), गिरफ्तार हुए मज़दूरों में से एक के वकील, और कापसहेड़ा में रह रहे कुछ मज़दूरों से भी मिली |
फैक्ट-फाइंडिंग के दौरान, टीम को उद्योग विहार के कपड़ा उद्योग में काम कर रहे मज़दूरों के जीवन के बारे में जानने का मौका मिला | टीम ने उनके काम और रहने की परिस्थितियों को जाना | और यह जानने की कोशिश की कि इस इलाके में बार-बार हो रही हमले और हादसे की घटनाओं का इन परिस्थितियों से कोई नाता है या नहीं |
टीम की रिपोर्ट निम्नलिखित बातों को उजागर करती है –
1. 10 फरवरी की घटना में दो प्राथिमिकियाँ दर्ज़ हुई हैं – एक समी चंद और दूसरी मैनेजमेंट द्वारा | परिणामस्वरूप, गौरव इंटरनेशनल के 9 कर्मचारी गिरफ्तार हुए जो की अब बेल पर बाहर हैं | दूसरी तरफ 4 मज़दूर गिरफ्तार हुए हैं, जिनमें से 2 की बेल की अर्ज़ी नामंज़ूर कर दी गई हैं | समी चंद, जिसके साथ मार पीट की गई थी, और उसकी पत्नी और भाई को प्राथिमिकी में अफ़वाह फैलाने के लिए नामजद किया गया है |
2. 10 फरवरी की घटना कपड़ा उद्योग में घट रही अनेकों घटनाओं एवं हादसों में से एक थी | ये घटनाएं यहाँ के मज़दूरों के बीच पनप रही असंतुष्टि और काम की खराब परिस्थितियों को प्रतिबिम्बित करती हैं |
3. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक ब्रैंड्स के लिए कपड़े बनाए जाते हैं | उद्योग विहार इलाके की कपड़ा यूनिट्स इनमें से एक हैं | कम से कम 1990 के दशक से मज़दूरों को ‘चेन सिस्टम‘ या असेम्बली लाइन में काम करवाया जा रहा है जिसमें हर मज़दूर एक छोटे कार्य के लिए ज़िम्मेदार होता है, जैसे कमीज़ का कॉलर या एक बाजू सिलना आदि |
4. अधिकाँश मज़दूर उत्तर प्रदेश या बिहार से आए प्रवासी मज़दूर हैं, जिनमें अधिकतर मुसलमान हैं | 15-20 साल इस इलाके में काम करने और रहने के बावजूद इनके पास न तो राशन कार्ड हैं, और न ही वोटर कार्ड |
5. हालांकि मज़दूरों को हरियाणा सरकार की अधिसूचना के अनुसार न्यूनतम मज़दूरी मिलती है, पर इनकी तनख्वाह की क्रय-शक्ति में लगातार गिरावट हो रही है | इसका मतलब वे उस तनख्वाह से पहले से कम खरीददारी कर सकते हैं | सब दर्जियों में से सबसे विशेषाधिकृत दर्जी का भी मूल मासिक वेतन केवल 6203 रुपय है | और यह 2015 में हुए आखिरी बढ़त के बाद की स्थिति है |
6. कम वेतन की वजह से ओवरटाइम आम बात हो गया है | कईं मज़दूर हर महीने 100 घंटे तक ओवरटाइम करते हैं (जबकि कानूनी तौर पर हर तीन महीने में केवल 50 घंटे के ओवरटाइम की अनुमति है) | गौरतलब है की हाल में केंद्र द्वारा फैक्ट्रीज एक्ट (1948) में प्रस्तावित संशोधन ओवरटाइम की इस स्वीकृत सीमा को दुगना (तीन महीने में 100 घंटे) करने की बात करता है [अनुच्छेद 64 का प्रस्तावित संशोधन] |
7. फैक्ट्रियों द्वारा लगातार अलग-अलग तरीकों के प्रयोग से कार्य की तीव्रता और गति को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है | इसके कारण कई बार सुरक्षा उपायों का पालन नहीं हो पाता है क्योंकि वे काम की गति को धीमा करते हैं | ऐसे में हादसे अक्सर होते हैं |
कपड़ा उद्योग में हादसे और मज़दूरों के क्रोध को दर्शाती घटनाएं, उनके असुरक्षित और संकटपूर्ण जीवन का प्रमाण हैं | ध्यान देने योग्य है की ये ही असुरक्षित मज़दूर भारतीय अर्थव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण सेक्टर का हिस्सा हैं |
रिपोर्ट की प्रति इस लिंक पर उपलब्ध है dhagon-me-uljhi-jindgiyan.pdf
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