कोर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स ऑर्गेनाइजेशन (सीडीआरओ) के 18 सदस्यीय टीम जांच के लिए बीते हफ्ते बस्तर के दौरे पर आई थी। टीम इसी साल नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण, पालनार कन्या छात्रावास में 16 छात्राओं (नाबालिग) के साथ छेड़-छाड़ व लैंगिक हिंसा एवं बुर्कापाल के ग्रामवासियों के ऊपर सीआरपीएफ एवं पुलिस ज्यादतियों की खबरों की पुष्टि व तथ्य इक्ट्ठा करने की उद्देश्य से आई थी।
बस्तर में आदिवासी-किसानों की जमीन अधिग्रहण को लेकर सन् 1950 से (बैलाडीह अधिग्रहण) विरोध होता रहा है। खासकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यह संघर्ष तीव्र हुआ है। नगरनार स्टील प्लांट का इतिहास इसी की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
नगरनार में सीडीआरओ की टीम ने सरपंच और स्टील प्लांट यूनियन के पदाधिकारियों के साथ बातचीत की। सरपंच और यूनियन के पदाधिकारियों ने बताया कि इस प्लांट की संरचना एवं आवदेन ‘मुकुंद स्टील लिमिटेड’ ने 1992 में रखा था। लोगों के विरोध के चलते यह योजना आगे नहीं बढ़ पाई। सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने मुकुंद के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाते हुए यह प्रोजेक्ट एन एम डी सी को सौंप दिया जो कि सार्वजनिक क्षेत्र के नवरत्न कम्पनियों में आता है। 2001 में 1100 एकड़ और 2010 में 1100 एकड़ जमीन 8 गांवों से ली गई। 2001 पुनर्वास योजना के तहत इन गांव वालों को लिखित रूप से आश्वासन दिये गये थे। उस आश्वासन में नगरनार स्टीलप्लांट में गांववासियों को नौकरी की गारंटी दी गई थी। 2001 में जमीन का मुआवजा 8-16 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से और 2010 में यह रकम बढ़कर 10-13 लाख रू. प्रति एकड़ दिया गया। 2017 में यह जमीन 30-40 लाख रू. प्रति एकड़ बतायी जा रही है। 2001 और 2010 में 2200 एकड़ जमीन लेने के बाद 2017 में 2300 एकड़ और जमीन अधिग्रहित करना चाहती है। 13 ग्राम पंचायतों ने यह निर्णय लिया है कि एन एम डी सी को एक इंच भी जमीन नहीं दी जायेगी जिसका मुख्य कारण निजी कम्पनी की घोषणा है। अद्भुत बात यह है की यह प्लांट अभी निर्माण कि प्रक्रिया में है लेकिन इसके बेचने की योजना सरकार ने पहले से तैयार कर ली है। प्रभावित ग्रामवासियों का यह कहना है कि ‘‘हमने इस प्लांट के बनने के शुरू में विरोध किया था लेकिन सरकारी आश्वासन और सरकारी परियोजना होने के कारण हम यह प्लांट बनने देने के लिए तैयार हो गये।’’
सीडीआरओ की मांग है कि-
1) 2300 एकड़ भूमि अधिग्रहण को रोका जाये, क्योंकि लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
2) प्लांट के निजीकरण को रोका जाये।
3) सभी तरह के समझौते को पूरी तरह से लागू किया जाए जिसमें रोजगार, मुआवजा व पुर्नवास के लिए आर्थिक मदद दी जाए।
4) एन एम डी सी और उनके ठेकेदार श्रम कानून का पालन करें।
5) आदिवासियों की जमीन लेते समय कानूनी प्रावधान को लागू किया जाए।
6) प्लांट से लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान न हो इसकी गारंटी सुनिश्चित किया जाए।
पालनार में जब सीडीआरओ की टीम ‘कन्या छात्रावास’ पहुंची और छात्राओं व हास्टल के पदाधिकारियों से बात करने की कोशिश की तो नियमों का हवाला देकर बात करने से मना कर दिया गया। रक्षा बन्धन के नाम पर जो प्रोग्राम किया जा रहा था वह एक लैंगिक हिंसा की वारदात में तब्दील हो गया। उसमें हमारे कुछ प्रश्न हैं जिसके बारे में हम तथ्य इक्ट्ठा करना चाह रहे थे।
1) नाबालिग बालिकाओं के छात्रावास में निजी टीवी चैनल द्वारा कार्यक्रम की स्वीकृति किसने दी? जिसमें वरिष्ठ पुलिस, सीआरपीएफ और अन्य अधिकारी मौजूद थे। सुकमा जिलाधिकारी के अनुसार इस तरह के प्रोग्राम की स्वीकृति उनके द्वारा नहीं दी गई थी।
2) यह वारदात तब घटी जब वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में 31 जुलाई को रक्षा बंधन का उत्सव मनाया जा रहा था। यह कैसे संभव है कि इस वारदात के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी नहीं थी।
3 ) एसपी और डीएम को अगले दिन (1 अगस्त) को घटना की जानकारी मिल चुकी थी लेकिन एफआईआर 6 दिन बाद 7 अगस्त को दर्ज कराया गया, क्यों?
4) नेतृत्व की जिम्मेदारी के तहत वार्डन, एसपी, सीआरपीएफ के अफसर और सरपंच जिम्मेदार हैं। उन्होंने न केवल इस कार्यक्रम को होने दिया बल्कि उसमें भागीदारी भी की। जो कानूनी रूप से एक अपराध है जिसमें छात्रावास के नाबालिग बच्चियों को मजबूरन शामिल किया गया। इसके अलावा एसपी और डीएम ने एफआईआर दर्ज करने में कोताही बरती जो निर्भया ऐक्ट के अनुसार अपराध की श्रेणी में आता है।
5) हमारा यह भी मानना है कि 16 नाबालिक छात्राओं के साथ केवल दो सिपाहियों के द्वारा इस घृणित घटना को अंजाम दिया गया होगा यह पूरी तरह से सच नहीं है। यह गैर कानूनी वारदात और एफआईआर दर्ज करने में कोताही हमारी शक को पुख्ता करती है कि तथ्यों को छुपाया जा रहा है। हालांकि एफआईआर दर्ज हो गई है लेकिन टीम का मानना है कि दो और कानून के प्रावधान जोड़ना जरूरी है। जिसमें 34 (साझा मंशा) और धारा 452 (अपराधिक घुसपैठ) जोड़ा जाना चाहिए।
सीडीआरओ मांग करता है कि इसकी जांच सीबीआई द्वारा न्यायालय के देख-रेख में कार्रवाई की जाये क्योंकि इसमें उच्च स्तरीय अधिकारी शामिल हैं। इसमें एस सी एस टी एट्रोसीटीज ऐक्ट और पोस्को ऐक्ट के तहत अधिकारियों ने गैर जिम्मेदार व्यवहार किया।
सीडीआरओ के टीम का बुर्कापाल जाने का मकसद घटनाओं की जांच करना और ग्रामवासियों से छुट-पुट ज्यादतियों की घटनाओं के संबंध में तथ्यों की जनकारी करना था। बुर्कापाल की घटना एक दर्दनाक घटना थी परंतु ऐसी खबरे आ रही है कि घटना के बाद सीआरपीएफ और पुलिस ने गांव वासियों को पकड़कर गैर कानूनी रूप से पुलिस हिरासत में रखा, जिसकी खबर घर वालों को भी दी गई। गांव की महिलाओं ने सोनी-सोरी से मुलकात कर यह खबर जनमानस तक पहुंचाई तब पुलिस ने दस दिन बाद 40 गांव वालों की घेराबंदी कर गिरफ्तार करने की बात स्वीकार की। जबकि खबरें है कि ऐसे आस-पास के गांव से 80 लोगों को पकड़ा गया है।
सीडीआरओ ने कभी भी पुलिस से रहने की जगह की मांग नहीं उठाई थी लेकिन एस पी का बयान हास्यास्पद है जिसमें कहा गया है कि टीम ने रहने की मांग उठाई (द हिन्दू, 14 अगस्त, 2017)। सीडीआरओ,, सुकमा एसपी की उस बात की स्वागत करती है जिसमें उन्होंने कहा है कि सीडीआरओ की टीम 15 अगस्त के बाद बेरोक टोक न केवल बुर्कापाल बल्कि सुकमा जिले का दौरा कर सकती है।
जांच दल में शामिल संगठन : एपीडीआर (कलकत्ता), सीएलसी (तेलंगाना), सीएलसी (आंध्र प्रदेश), एएफडीआर (पंजाब), सीपीडीआर- तामिलनाडु, सीपीडीआर- महाराष्ट्र, पीयूडीआर- दिल्ली।