53 राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर गोगाई द्वारा 23 मई 2018 को एक कश्मीरी महिला से यौन सम्बंध बनाने के मामले में 30 मई 2018 को कश्मीर पुलिस ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने अपनी रिपोर्ट दाखिल की। पुलिस के अनुसार यह मामला वयस्कों में परस्पर मंजूरी से संबंध बनाने का है क्योंकि एक तो महिला की उम्र 19 साल है दूसरा उसने और होटल के कर्मचारियों ने (जिन्होंने उन्हें होटल में नहीं रुकने दिया था) इस मामले में कोई शिकायत दर्ज़ नहीं की है। इस संस्थात्मक निष्क्रियता के संबंध में पी.यू.डी.आर. केस के कुछ तथ्यों पर प्रकाश डालना चाहता है जिनसे यह ज़ाहिर होता है कि यह मामला ‘‘उपद्रवग्रस्त क्षेत्र’’ में सेनाकर्मियों द्वारा सत्ता के दुरूपयोग का है।
पुलिस की दलील कि शिकायत का दर्ज़ ना किया जाना आपसी सहमति का सबूत है कई सवाल खड़े करता है। यह तर्क वर्दीधारी सैनिकों को लेकर समाज में व्याप्त उस भय के वातावरण को नज़रअन्दाज करता है जहाँ अफ्स्पा की आड़ में सेना को अत्यधिक अधिकार और दण्डमुक्ति प्राप्त है। प्रेस में रिपोर्ट किए गए केस के तथ्य इस दंडमुक्ति की ओर इशारा करते हैं। मेजर गोगोई ने सामाजिक (सोशल) मीडिया पर नकली पहचान बनाकर महिला से समपर्क किया और फिर अपने ड्राइवर समीर मल्ला को लेकर दो बार नागरिक पोशाक में बडगाम के उसके घर पर बिना बुलाए पहुँच गए। ड्राइवर एक रेनेग्रेड उपद्रवी था और महिला के परिवार के अनुसार दलाल का काम कर रहा था, जबरन घर में घुस गया था। महिला ने जब मेजर गोगोई से फेसबुक पर सम्पर्क बनाया तो उसे उस की असली पहचान के बारे में जानकारी नहीं थी। उसके बाद के उनके परस्पर सम्बन्धों के बारे में उसने कुछ नहीं कहा है जो संदेह पैदा करता है। परिवार ने कोई शिकायत दर्ज़ नहीं की है क्योंकि उनमें भय और असुरक्षा की भावना है।
अत्यधिक अधिकारों से लैस सेनाकर्मियों के यौन दुराचार की यह पहली घटना नहीं है। जहाँ एक तरफ ये दुराचार हिरासत में बलात्कार और मानव तस्करी के रूप में सामने आते हैं, दूसरी तरफ यह समझना भी ज़रूरी है कि वर्दी की ताकत असहमति को असम्भव बना देती है, खासकर संघर्ष क्षेत्र में एक महिला के लिए। इस संदर्भ में मई 2006 के यौन शोषण के मामले में 30 मई 2018 में आए सीबीआई के फैसले को याद रखना ज़रूरी है जिसमें जम्मू और कश्मीर के अन्य शक्तिमान लोगों के साथ प्रतिविद्रोही संचालन में लगे सेना के उच्च अधिकारियों के शामिल होने का पर्दाफाश हुआ।
पुलिस द्वारा सहमति की दलील देना इसलिए चिन्ताजनक है क्योंकि उन्हें मेजर गोगोई की शक्ति और प्रभाव को नज़रअन्दाज़ कर दिया है। नागरिकों के प्रति अमानवीय व्यवहार के लिए पहचान बना चुके मेजर गोगोई ने अप्रैल 2017 को फारूख डार को अपनी जीप से बांध कर मानव कवच की तरह इस्तेमाल किया था जिसके लिए सेना ने उन्हें पुरस्कृत भी किया था। इसलिए प्रश्न यह नहीं है कि मेजर गोगोई ने सेना के नियमों का उल्लंघन किया या नहीं जैसा कि सेना के चीफ ने कहा है, असल प्रश्न यह है कि दण्डमुक्ति की परम्परा को किस तरह से मान्यता प्राप्त करावायी जा रही है। जिसके चलते सेनाकर्मियों को आम नागरिक पर यौन अधिकार को खुली छूट है। इसलिए यह आवश्यक है कि उपद्रव ग्रस्त क्षेत्र में स्थित सैनिक कर्मियों को फौजदारी न्यायालयों के अधिकृत रखा जाए जिससे आम नागरिकों के न्याय के अधिकार की सुरक्षा हो सके।
सचिव
शाहना भट्टाचार्य और शशि सक्सेना