कोऑरर्डिनेशन ऑफ़ डैमोक्रैटिक राइट्स ओर्गानिज़ेश्न्स (सीडीआरओ) और वीमेन अगेन्सट सैक्सुअल वायेलेंस एंड स्टेट रिप्रैशन (डब्लूएसएस) ने 16 से 22 जनवरी 2016 के बीच छत्तीसगढ़ के बीजापुर और सुकुमा जिलों के गाँवों में एक जाँच की। जाँच दल ने 15 जनवरी को पेद्दाजोजेर (बीजापुर) गाँव के 4 निहत्थे ग्रामीणों की फर्ज़ी मुठभेड़ में हत्याओं और नेन्द्रा (बीजापुर) और कुन्ना (सुकुमा) गाँवों में सुरक्षा बलों द्वारा बड़े पैमाने पर 11 से 14 जनवरी 2016 के बीच की गई हिंसा और खास कर यौन हिंसा जाँच पड़ताल की। सरकारी अधिकारियों के साथ साथ जाँच दल ने पेद्दाजोजेर गाँव में मारे गए लोगों के परिवार वालों और कुन्ना, नेन्द्रा और छोटेगदम गाँवों में वर्दीधारी सुरक्षा बलों द्वारा की गई लूटपाट, बलात्कार, यौन उत्पीड़न और शारीरिक हिंसा से प्रभावित परिवारों और अन्य गाँव वालों से मुलाकात की। जाँच दल जगदलपुर के महारानी अस्पताल में दाखिल दो घायल महिलाओं से भी मिला।
जाँच दल के जाँच परिणाम निम्नलिखित हैं:
पेद्दाजोजेर गाँव
- 15 जनवरी 2016 की सुबह पेद्दाजोजेर गाँव के छः ग्रामीण रोज़मर्रा की चीजें खरीदने पास के बाज़ार जा रहे थे। इनमें तीन पुरुष और तीन छोटी बच्चियाँ थीं (देखें रिपोर्ट का ऐनेक्सर 1, पेज 8-9)।
- रास्ते में घने जंगल में इंतज़ार में तैनात सुरक्षा बलों ने उन पर घात लगाकर हमला किया। छः लोगों में से दो बच्चियाँ किसी तरह से बचकर भाग निकलीं और तीसरी बच्ची और तीन लोग मारे गए।
- गोलियों की आवाज़ें सुनकर और बच कर आई दो बच्चियों द्वारा घटना के बारे में बताए जाने पर, गाँव वाले तुरंत घटना स्थल पर पहुँचे तो उन्होंने पाया कि मारे गए चारों लोगों के शव वहाँ से गायब थे।
- सुरक्षा बलों ने मारे गए लोगों के परिवारों को बताए बिना ही उनके शवों को वहाँ से हटा दिया था। उन्होंने तथाकथित मुठभेड़ के स्थान पर कोई जाँच नहीं की। सुरक्षा बल शवों को बीजापुर जनरल अस्पताल ले गए। और राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन (एनएचआरसी) के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए अस्पताल में इन लोगों की सही तरह से शिनाख्त किए बिना ही इनके शवों का पोस्ट मोर्टेम कर दिया गया। पोस्ट मोर्टेम की वीडियो रिकॉर्डिंग भी नहीं की गई।
- गाँव वालों को जब पता चला कि शव कहाँ हैं तो वे अस्पताल के बाहर इकट्ठा हुए और उन्होंने मांग की कि शव उन्हें वापस किए जाएं। शुरू में पुलिस वालों ने इससे इनकार किया और परिवहन शुल्क के रूप में 4000 रु. भी मांगे। बाद में गाँव वालों के विरोध के बाद ही 17 जनवरी को शव उन्हें वापस सौंपे गए।
- मारे गए 4 लोगों में से तीन पोद्दाजोजेर गाँव के साधारण ग्रामीण थे जो कि खेती का काम करते थे और चैथी केवल 13 साल की एक बच्ची थी। वे कोई माओवादी नहीं थे, जैसा कि सुरक्षा बलों का दावा है।
- गाँव वालों ने हमें बताया कि सुरक्षा बलों द्वारा प्रताड़ित किया जाना कैसे रोज़ की बात हो गई है।
कुन्ना गाँव
- 11 से 14 जनवरी के बीच सुरक्षा बलों ने सुकुमा जिले के कुन्ना और छोटेगदम गाँवों पर कब्ज़ा कर लिया। डीआरजी, सीआरपीएफ़ और कोबरा के करीब 500 से 500 अर्धसैनिकों द्वारा क्षेत्र में तलाशी अभियान चलाया जा रहा था।
- ये अर्धसैनिक पहले एक स्कूल में रहे पर बाद में लोगांे के घरों में घुस गए।
- पहले दो दिनों में इन अर्धसैनिकों ने बहुत सी महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया। कम से कम दो महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। औरतों को निर्वस्त्र किया गया, पीटा गया और गालियाँ दीं गईं। छोटी बच्चियों को भी सुरक्षा बलों द्वारा निर्वस्त्र किया गया।
- 12 जनवरी को कुन्ना के बहुत से पुरुषों और महिलाओं को हिरासत में ले लिया गया (और जानकारी के लिए देखें एनेक्सर 2)। पुलिस कैंप ले जाते समय पाँच पुरुषों और पाँच महिलाओं की लगातार पिटाई की गई। पाँच महिलाओं को निर्वस्त्र किया गया और उनका यौन उत्पीड़न किया गया। इसके अलावा तीन लड़कों को गैरकानूनी हिरासत में रखा गया और उनसे जबरन कोरे कागज़ों पर हस्ताक्षर करवाए गए।
- 12 जनवरी को 21 साल के लालू सोडी को सुरक्षा बलों ने बुरी तरह से पीटा। दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। गाँव वालों ने मौत के बारे में किसी को नहीं बताया क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा करने पर सुरक्षा बल और अधिक प्रताडि़त कर सकते हैं।
- वर्दीधारी सुरक्षा बलों ने गाँव वालों के मवेशी हथिया लिए, घर तोड़ दिए और उनके औज़ार चोरी कर लिए (देखें एनेक्सर 2)।
- जाँच दल ने पाया कि कुन्ना गाँव के लोग दहशत और सकते की हालत में हैं और सुरक्षा बलों द्वारा की गई हिंसा के कारण उनकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी मुश्किल हो गई है।
- एक दुखद प्रक्रिया से गुज़रने के बाद, कार्यकर्ता और कुन्ना की महिलाएं अंततः 27 जनवरी 2016 को एक एफ़आईआर दर्ज़ करवा पाईं (और जानकारी के लिए देखें पेज 15)।
- छोटेगदल गाँव में भी इसी तरह की लूटपाट और हिंसा हुई (और जानकारी के लिए देखें पेज 11-12 और ऐनेक्ज़र 2)
नेन्द्रा गाँव
- 11 से 14 जनवरी के बीच सुरक्षा बल बीजापुर के नेन्द्रा गाँव में काबिज़ रहे। इस बीच पुलिस और सुरक्षा बलों (सीआरपीएफ़, डीआरजी और कोया) की चार से पाँच टुकडि़यों ने खोज और तलाशी अभियान चलाया।
- गाँव के पुरुष तुरंत भाग निकले क्योंकि वहाँ रुके रहने का मतलब था पिटाई और झूठे मामलों में फंसाया जाना। सुरक्षा बल ग्रामीणों में घरों में घुस कर रहे।
- महिलाओं ने सामूहिक बलात्कार की 13 से ज़्यादा घटनाओं के बारे में बताया। और भी बहुत सी महिलाओं को निवस्त्र किया गया, तंग किया गया और गालियाँ दीं गईं। बलात्कार करते समय महिलाओं के चेहरों को तौलियों और यहाँ तक की मच्छरदानियों से ढंक दिया गया।
- सुरक्षा बलों ने न केवल बच्चों को अंदर रखकर घर जला देने की धमकियाँ दीं बल्कि ये धमकियाँ भी दीं कि उन्हें वैसी ही हिंसा का सामना भी करना पड़ सकता है जैसा कि सलवा जुडूम के समय उन्होंने किया था।
- सुरक्षा बलों द्वारा राशन लूट लिये जाने, मुर्गियाँ वगैरह हथिया लिए जाने से पहले से ही अत्यंत गरीबी में रह रहे इन लोगों का अत्यधिक आर्थिक नुकसान हुआ है (और जानकारी के लिए देखें ऐनेक्ज़र 3)।
- जब महिलाओं ने सुरक्षा बलों से उनके द्वारा खाए गए राशन के लिए पैसों की मांग की तो उन्हें लाठियों और राइफलों से पीटा गया। बड़ी उम्र के लोगों को भी पीटा गया (और जानकारी के लिए देखें ऐनेक्ज़र 3)
- 18 जनवरी को जाँच दल के लोग नेन्द्रा गाँव की महिलाओं के साथ इन घटनाओं को उजागर करने के लिए कलक्ट्रेट गईं। परन्तु उन्हें एफआईआर दजऱ् करने के लिए 21 जनवरी तक इंतज़ार करना पड़ा। और प्रशासन के साथ लंबी जद्दोजहद के बाद ही एफआईआर दजऱ् हो पाई (और जानकारी के लिए देखें पेज 16)
राज्य की प्रतिक्रिया
जाँच दल के समय और उर्जा का बहुत सा हिस्सा अभियुक्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने के लिए अधिकारियों से मिलने में गया। तीनों ही मामलों में प्रशासन का रुख बेहद असंवेदनशील और द्वेषपूर्ण था। पेद्दाजोजेर के मामले में अधिकारियों का कहना था ‘हम मामले की जाँच करेंगे’। कुन्ना के मामले में एफआईआर दजऱ् करवाने में जाँच दल और भुग्तभोगियों को करीब 13 दिनों तक जद्दोजहद करनी पड़ी। नेन्द्रा की घटना में कलैक्टर ने बयान दजऱ् करने के आदेश दे दिए पर पुलिस ने ऐसा करने से मना कर दिया। जाँच दल द्वारा नेशनल कमीशन फॉर वीमेन (जो कि खुद पेद्दागेलूर की अक्टूबर 2015 की कुख्यातघटना के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहा था) के सदस्यों से मिल पाने के बाद ही 21 जनवरी को एफआईआर दजऱ् हो पाई।
इन घटनाओं और छत्तीसगढ़ में साधारण ग्रामीणों, कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों के लिए डर का वातावरण बना दिए जाने को मिशन 16 के संदर्भ में देखना ज़रूरी है, जो कि सरकार द्वारा माओवादियों को खतम करके यहाँ की ज़मीनों को खनन कंपनियों को सौंप देने के लिए चलाया जा रहा है।
आशीष गुप्ता (सीडीआरओ)
शिवानी (डब्लूएसएस)