People’s Union for Democratic Rights

A civil liberties and democratic rights organisation based in Delhi, India

विचाराधीन कैदियों के परिवार  संभवतः अधिक कष्ट में रहते हैं क्योंकि उनके प्रिय जेल में हैं और इससे उनकी ज़िन्दगी बहुत  गहरा प्रभाव पड़ता है. यह एक ऐसा यथार्थ है जिसे शायद ही रेखांकित किया जाता है और इसका समाधान तो दुर्लभ ही होता है. एक ‘जनतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ता’ होने के नाते यह बात मुझे परेशान करती है कि हम सभी के लिए न्याय एक दूर का सपना लगता है. अतिरिक्त बोझ से लदी न्यायपालिका त्वरित और न्यायपूर्ण ट्रायल चलाने में खुद को असमर्थ पाती है. कैदी के रूप में मैं अक्सर यह उम्मीद करता था कि काश न्यायपालिका अपने इस ऊंचे सिद्धांत की उद्घोषणा कि “एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता से वंचित होना बहुत बड़ी बात होती है” को कार्यान्वित कर पाती क्योंकि विचाराधीन कैदियों के लिए यह एक वादा है.

हालांकि अभी मुझे आज़ादी की सांस लेते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है और मैं अपने प्रिय लोगों से मिल जुल रहा हूँ, लेकिन मैं इस बात के प्रति भी सचेत हूँ कि ढेर सारे लोग अनिश्चितता के चक्र में अभी भी फंसे हुए हैं.

इससे मुझे काफी दुःख पहुंचा है कि फादर स्टेन स्वामी को जीते जी बेल नहीं दी गई और उन्हें केवल मौत के बाद ही उन्हें मुक्ति मिल पाई.

मेरे 18 महीने की नज़रबंदी बीटी रणदिवे ट्रस्ट के ट्रस्टियों और सीपीएम की उदारता के कारण संभव हुआ. जब अन्य सभी विकल्प व्यर्थ साबित हुए तब ये लोग आगे आये और मुझे व मेरी जीवन साथी साहबा हुसैन को आश्रय दिया जिसके लिए मैं उनका ह्रदय से आभारी हूँ.

इस पूरे 18 महीने के दौरान नवी मुंबई पुलिस के अफसरों और स्टाफ के नम्र और शालीन व्यवहार के लिए शुक्रिया! मैं और साहबा दोनों इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हैं.

अंत में, मेरे साथ खड़े होने के लिए मैं अपने वकीलों, दोस्तों, परिवार के लोगों, साथी एक्टिविस्टों और स्वतंत्र मीडिया का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ. मुझे उनके प्यार और एकजुटता से कैद की इस कठिन परीक्षा का सामना करने की ताकत मिली.

अब जबकि मैं आज़ाद हूँ…

“क्या तुम मुक्ति के गीत गाने में
मदद नहीं करोगे ?
क्योंकि मेरे पास केवल और केवल
मुक्ति गीत ही हैं…”
-बॉब मोर्ले

गौतम नवलखा
बेलापुर
मई,19 2024

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