पीयूडीआर ने हमेशा माना है की यूनियन बनाने का अधिकार और सामूहिकसमझौता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(c) के तेहत एक मूल अधिकार है | यह अधिकार मज़दूरों को अपनी परेशानियां रखने और मैनेजमेंट के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए ज़रूरी है | जब भी मज़दूर एकजुट होने की कोशिश करते हैं, मैनेजमेंट इसका विरोध करती है | राजस्थान के टापूखेड़ा में हौंडा मोटरसाइकिल और स्कूटर इण्डिया लिमिटेड (एच.एम.एस.आई.एल.) में चल रहा संघर्ष दर्शाता है की कैसे खुलेआम कंपनी द्वारा मज़दूरों को अपने मूल अधिकारों को बरतने से रोका जा रहा है | यह सब कंपनी, सरकार और पुलिस की मिलीभगत और एक उदासीन श्रम विभाग के कारण हो रहा है |
हौंडा कंपनी भारत में दुपहिया वाहन बनाने वाली सबसे बड़ी कम्पनी है | गुड़गाँव के अलावा टापूखेड़ा में राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर इसका एक कारखाना है | याद रहे की 2014 में राजस्थान ने मजदूरों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए सबसे पहले अपने श्रम कानूनों में संशोधन किया था | टापूखेड़ा कारखाने में स्थानीय मजदूरों के अलावा राजस्थान और हरियाणा के अन्दर के इलाकों, एवं यूपी, बिहार से भी प्रवासी मज़दूर काम करते हैं | हौंडा मैनेजमेंट के अनुसार ठेका मज़दूरों को प्रति माह 10-15 हज़ार, कंपनी केशुअल्स को 12.5-17.5 हज़ार, प्रशिक्षणार्थियों को 14.5-20 हज़ार और स्थायी मज़दूरों को 23 हज़ार वेतन मिलता है | स्थायी मज़दूरों को 65 और ठेका मज़दूरों को 45 रूपए प्रति घंटा ओवरटाइम मिलता है हालाँकि मज़दूरों का कहना है की अगर वे कुछ दिनों की छुट्टियाँ लेते हैं या देर से आते हैं तो उनकी वेतन में कटौती होती है | स्थायी मज़दूरों का मूल वेतन 6500 रूपए और ठेका मज़दूरों का 4700 रूपए है |
मैनेजमेंट द्वारा लगातार कम आराम व ज़्यादा काम का दबाव और वेतन में कटौती के चलते यूनियन के बिना मैनेजमेंट का सामना करना मुश्किल हो गया था | इसीलिए मई 2015 में एच.एम.एस.आई.एल. के मज़दूरों ने हौंडा मोटरसाइकिल और स्कूटर 2एफ कामगर यूनियन बनाने का फैसला लिया | 6 अगस्त 2015 को पंजीकरण का आवेदन देने के बाद से ही मैनेजमेंट की तरफ से प्रताड़ना शुरू हो गई | कुछ मज़दूरों को लगातार 2 दिनों तक ओवरटाइम करवाया गया, बाकियों को बरखास्तगी की चेतावनी दी गई | नवम्बर में 4 मज़दूर प्रतिनिधियों को बरखास्त कर दिया गया | 14 दिसंबर को यूनियन ने मैनेजमेंट को सामूहिक मांग पत्र दिया | अलवर के श्रम विभाग कार्यालय में 4 त्रिकोणीय बैठक हुईं जिनमें मैनेजमेंट ने भाग नहीं लिया | हद तब पार हो गई जब 16 फरवरी को शिफ्ट ए के एक मज़दूर को ओवरटाइम काम न करने के लिए पीटा गया | गुस्साए मज़दूरों ने हड़ताल कर दी | मैनेजमेंट और मजदूर प्रतिनिधियों के बीच चल रही वार्ता के मध्य में ही मैनेजमेंट ने पुलिस और बाउंसरों को अन्दर बुला लिया | जब मज़दूरों ने उनके प्रतिनिधियों के लौटने तक कारखाना छोड़ने से मना कर दिया तो पुलिस और बाउंसरों ने उनको बुरी तरह पीटा | 200 से अधिक मज़दूर गिरफ्तार हुए | 4 स्थायी मज़दूरों, जो की मजदूर प्रतिनिधि भी थे, को ख़ास निशाना बनाया गया और पुलिस हिरासत में प्रताड़ित किया गया | उसी दिन 467 स्थायी और 2500 ठेका मज़दूरों को बरखास्त कर दिया गया | बाद में आर.एस.एस. द्वारा संचालित भारतीय मज़दूर संघ ने मैनेजमेंट के साथ समझौता करते हुए मैनेजमेंट हितैशी यूनियन बनायी और कुछ मज़दूर काम पर लौट गए | आज भी 200 स्थायी और 3000 ठेका मज़दूर बरखास्त हैं |
इस बीच 44 मजदूरों पर दंगे भड़काने, हत्या की कोशिश करने, सरकारी अफसर की ड्यूटी में बाधा डालने, जीवन को खतरे में डालने, और क्षति पहुंचाने का आरोप लगाया गया | 42 अन्य मज़दूरों पर एक उद्देश्य के लिए गैरकानूनी सभा करने, सोच समझकर चोट पहुंचाने, बंधन में रखने, डकैती, अनाधिकार प्रवेश करने और क्षति पहुंचाने का आरोप लगाया गया | हालांकि 44 मज़दूरों को जयपुर उच्च न्यायालय से बेल मिल गई है लेकिन बेल की शर्तें न्यापालिका द्वारा किया गया एक भद्दा मज़ाक नज़र आता है | उन्हें 2-2 ज़मानती और 1-1 लाख रूपए का बांड भरने को कहा गया है | 42 मज़दूर अभी अपनी अग्रिम बेल की सुनवाई के इंतज़ार में हैं |
फरवरी से राजस्थान और हरियाणा सरकारों ने पुरज़ोर प्रयास किया है की जयपुर, टापूखेड़ा, अलवर, रेवाड़ी, गुड़गाँव और भिवाड़ी में मज़दूरों की कोई हड़ताल न हो सके | झूठे मुकदमें, मैनेजमेंट द्वारा लगातार प्रताड़ना और श्रम विभाग की उदासीनता के चलते हौंडा मज़दूर 19 सितम्बर से जंतर मंतर, नई दिल्ली पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं | मैनेजमेंट किस हद तक मज़दूरों की मूल आज़ादियों को कुचलने को आतुर है, यह इस बात से पता चलता है की 24 सितम्बर को एक स्थायी मज़दूर को इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि उसने हड़ताल सम्बंधित एक फेसबुक पोस्ट को ‘लाइक’ कर दिया | ऐसे में, हड़ताल पर बैठे हौंडा मज़दूरों के समर्थन में पीयूडीआर मांग करता है की मज़दूरों के खिलाफ सभी मुकदमें तुरंत वापस लिए जाएँ, सभी को वापस काम पर रखा जाए, और मज़दूरों द्वारा बनायी गई यूनियन को मान्यता दी जाए |
दीपिका टंडन, मौशुमी बासु
सचिव, पीयूडीआर