गढ़चिरोली सत्र न्यायालय में चले मुकदमे का फैसला, जिसमें पाँच लोगों, जी.एन.साईबाबा, महेश तिरकी, पांडू नरोटे, प्रशांत राही और हेम मिश्रा को आजीवन कारावास और विजय तिरकी को 10 साल की कैद की सज़ा सुनाई गई है, एक विचारधारा और नृशंस यू.ए.पी.ए. कानून द्वारा प्रतिबंधित संगठन के राजनैतिक अभियोजन का स्पष्ट उदाहरण है। इन छः अभियुक्तों को एक प्रतिबंधित संगठन सी.पी.आई. (माओवादी) का सदस्य होने का अपराधी ठहराया गया है और इसलिए उन्हें राजसत्ता के खिलाफ ‘षड़यंत्र’ करने का दोषी माना गया है, जबकि उनके खिलाफ, इस ‘षड़यंत्र’ को अंजाम देने के लिए किसी तरह का अपराध करने के कोई सबूत मौजूद नहीं हैं। उन पर यू.ए.पी.ए. के सैक्शन 13 (गैरकानूनी गतिविधि के लिए सज़ा), सैक्शन 18 (षडयंत्र के लिए सज़ा), सैक्शन 20 (किसी आतंकवादी संगठन या गैंग का सदस्य होने के लिए सज़ा), सैक्शन 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता से जुड़े अपराध) और सैक्शन 39 (आंतकवादी संगठन की मदद करने से संबंधित अपराध) और आई.पी.सी. के सैक्शन 120 बी (राजनैतिक षडयंत्र के लिए सज़ा) आरोप लगे हैं। जबकि सत्ताधारियों ने यू.ए.पी.ए. का इस्तेमाल अपने खिलाफ ‘षड़यंत्र’ के लिए दंडित करने के लिए किया है, गढ़चिरोली का फैसला यह दर्शाता है कि यह कानून असल में सरकार के पास एक हथियार की तरह है जिसे उन लोगों के खिलाफ षड़यंत्र के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जो सरकार के साथ किसी भी तरह की असहमति व्यक्त करें या जिनके सरकार के साथ कोई राजनैतिक मतभेद हों। ऐसे संगठनों को प्रतिबंधित करना, उनके साहित्य को गैरकानूनी बना देना, उनकी सदस्यता के लिए सज़ा देना यह सुनिश्चित करता है कि ‘आतंकवादी गतिविधियों’ और आतंकवादी संगठनों की आड़ में ऐसे संगठनों के असहमत विचार और राजसत्ता द्वारा अपने ही लोगों के खिलाफ चलाए जा रहे युद्ध की जानकारी को दबाया जा सके।
Download this report
2017-gadchiroli_parcha_hindi_23rd_april.pdf